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26 Aug 2025 · 1 min read

"टूटे हुए ख़्वाब जब बलंदी छूने लगते हैं"

“टूटे हुए ख़्वाब जब बलंदी छूने लगते हैं”

टूटे हुए ख़्वाब जब बलंदी छूने लगते हैं,
हम हक़ीक़त में ख़ुद से मिलने लगते हैं!!

जिन राहों से गुज़रने का डर था कभी,
हम अपाहिज़ हौसलों से चलने लगते हैं!!

कभी नाज़ुक ख़्वाब जो बिखरे हुए थे,
वो ख़ुद को समेट कर महकने लगते हैं!!

पीछा कर रही आरज़ूएँ हम-साए बन के,
कभी-कभी तो वो आगे चलने लगते हैं!!

जो शम्मा बुझ गई थी कभी शाम होते,
वक़्त के उरूज़ पर रोशन होने लगते हैं!!

©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”

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