दोहा सप्तक . . . . प्रेम
दोहा सप्तक . . . . प्रेम
प्रेम चेतना सूक्ष्म की, प्रेम प्रखर आलोक ।
प्रेम वेग को आज तक, कौन सका है रोक ।।
प्रेम स्वप्न परिधान है, प्रेम ईश वरदान ।
प्रेम अमर संसार में, इसका वृहद् वितान ।।
प्रेम न माने जीत को, प्रेम न माने हार ।
जीवन देता प्रेम को, एक शब्द स्वीकार ।।
प्रेम सदा निष्काम ही, देता शुभ परिणाम ।
दूषित करती वासना, इसके रूप तमाम ।।
अटल सत्य संसार का, अविनाशी है प्रेम ।
प्रेम समर्पण माँगता , हरदम इसमें क्षेम ।।
प्रेम कहाँ कुछ माँगता, प्रेम त्याग का नाम ।
प्रेम ज्योत है ईश की, प्रेम नहीं है काम ।।
प्रेम स्वार्थ से दूर है, यह अंतस की प्यास ।
हर दिन बढ़ता प्रेम जब, अटल रहे विश्वास ।।
सुशील सरना /25-8-25