Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
25 Aug 2025 · 1 min read

ग़ज़ल 2122 1212 22

ग़ज़ल 2122 1212 22

हर जवानी का फ़लसफ़ा हूँ मैं,
प्यार में दर्द चाहता हूँ मैं।

प्यार करना मुझे नहीं आता,
एक उस्ताद ढूंढता हूँ मैं।

फूंक कर छाछ पीता आज से मैं,
कल गरम दूध से जला हूँ मैं।

अब सियासत का ढंग देख सनम,
बारहा गुस्से से भरा हूँ मैं।

मेरी छाती भी छलनी हो चुकी है,
गांव का टूटा रास्ता हूँ मैं।

बेवफ़ा तुमको लोग कहते हैं,
तुम नहीं हो ये जानता हूँ मैं।

कैसे इज़हारे-इश्क़ तुमसे करूँ,
उम्र भर सोचता रहा हूँ मैं।

( डॉ संजय दानी दुर्ग )

Loading...