जिस्म
जिस्म से नाता तोड़ दिया है मैने तेरे लिए,
अब दिल से याद कर के प्रेम जोड़ लिया तुझसे।
जिस्म को मैं मानता हूँ पुतला।
हुस्न है जिससे बिखरे खुशबू यहाँ।।
नशा तेरे हुस्न का जब उतरा प्यार में।
तब जाकर समझ आया खड़ा हूँ किस बाजार में।।
जिस्म के चक्कर में कितने ही रिश्ते छांँट दिए “बिपिन”,
कवायद ये हुई अपनी ही जिंदगी डाल दिए मुश्किल में।
रचनाकार
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर l