कहानी : सूटकेस का रहस्य
कहानी : सूटकेस का रहस्य
उत्तराखंड की ऊँची-ऊँची पहाड़ियों के बीच बसा छोटा-सा गाँव चतरपुर प्रकृति की गोद में अपनी अलग ही शांति और सुंदरता समेटे था। इसी गाँव में नाहक सिंह का परिवार रहता था। नाहक सिंह एक मेहनती, सरल और ईमानदार व्यक्ति थे। उनका जीवन भले ही निर्धनता से घिरा हो, लेकिन आत्मसम्मान और कर्मठता उनकी पहचान थी।
उनकी धर्मपत्नी शील एक आदर्श गृहिणी थीं—संतोषी, सहनशील और कर्तव्यनिष्ठ। दोनों का जीवन कठिन जरूर था, मगर पति-पत्नी का आपसी प्रेम और सादगी उन्हें हर मुश्किल से पार कर ले जाती।
नाहक सिंह पेशे से पेंटर थे। काम की तलाश में उन्हें अक्सर गाँव से बाहर जाना पड़ता था। ऐसे में घर-गृहस्थी और बच्चों की जिम्मेदारी शील के कंधों पर रहती। उनके पाँच बेटियाँ और दो बेटे थे। समय का पहिया घूमते-घूमते बेटियाँ अपनी-अपनी ससुराल चली गईं। बड़ा बेटा अमरीका में एक होटल में शेफ की नौकरी करता था। दूसरा बेटा कुवैत में कमाने गया हुआ था। छोटा बेटा, राजवीर, गाँव में ही माता-पिता के साथ रहता था।
धीरे-धीरे समय आया कि राजवीर की शादी तय हो गई। घर में खुशियों का माहौल था। तैयारी पूरे जोरों पर थी। गाँव का छोटा-सा घर मेहमानों की चहल-पहल और आने वाले मंगल गीतों की कल्पना से ही जैसे जगमगा उठा था।
शादी की तैयारियाँ
राजवीर ने अपनी माँ से कहा—
“माँ, बहन सुषमा और मैं दिल्ली जाकर कपड़े और गहने ले आते हैं। गाँव में सब चीज़ें तो मिलेंगी नहीं।”
शील ने थोड़ी चिंता से बेटे को देखा, “ध्यान से रहना बेटा, शहर बहुत बड़ा होता है।”
राजवीर ने मुस्कुराकर भरोसा दिलाया, “माँ, चिंता मत करो, सब संभाल लूँगा।”
दिल्ली की यात्रा
राजवीर और उसकी बहन दिल्ली पहुँचे। वहाँ बाजारों की भीड़-भाड़, रंग-बिरंगे कपड़े, चमचमाते गहनों ने उनका मन मोह लिया। कई दिनों की खरीदारी के बाद जब वे वापस लौटने लगे तो उनके पास एक बड़ा सूटकेस था—जिसमें शादी के कपड़े, गहने और तोहफ़े भरे थे।
स्टेशन पर भीड़ बहुत थी। ट्रेन छूटने ही वाली थी। धक्का-मुक्की में जल्दी-जल्दी उन्होंने अपना सामान ट्रेन में चढ़ाया। उसी जल्दबाजी में सूटकेस का अदला-बदली हो गई, जिसका उन्हें एहसास भी नहीं हुआ।
घर पहुँचने पर
गाँव लौटकर जब सूटकेस खोला गया तो सबकी आँखें फटी की फटी रह गईं। अंदर वही कपड़े या सामान नहीं था—बल्कि चमचमाते महंगे जेवरात और अनगिनत कीमती चीज़ें रखी हुई थीं।
शील तो घबरा गईं—
“हे भगवान! ये क्या हो गया? हमारे तो कपड़े-गहने कहीं और चले गए।”
सारा परिवार बेचैन हो गया। शादी सिर पर थी और यह मुसीबत आ पड़ी थी।
खोजबीन की शुरुआत
दो दिन तक पूरा परिवार परेशान रहा। किससे पूछें, कहाँ जाएँ? तभी नाहक सिंह के मन में एक विचार आया—
“स्टेशन पर दुकानदारों से पूछते हैं। शायद जिसने सूटकेस उठाया होगा, उसने वहाँ किसी को अपना पता या नंबर दिया होगा।”
यह उम्मीद की एक किरण थी। राजवीर फिर से स्टेशन पहुँचा। दुकानदारों से पूछताछ शुरू की। एक-एक करके सबने सिर हिलाया, लेकिन एक पानवाले ने कहा—
“हाँ, एक आदमी था, उसने अपना मोबाइल नंबर और पता हमें दिया था। उसका सूटकेस भी गुम हो गया था।”
राजवीर ने राहत की साँस ली।
सूटकेस की वापसी
पता और नंबर लेकर वे सीधे उस व्यक्ति के घर पहुँचे। दरवाज़ा खोलते ही वह आदमी बोला—
“भाई साहब! आप ही होंगे जिनका सूटकेस मेरे पास है। मैंने बहुत ढूँढा, लेकिन आप तक पहुँचा नहीं पाया।”
फिर दोनों ने अपने-अपने सूटकेस बदल लिए। परिवार की चिंता दूर हो गई और घर में फिर से खुशी लौट आई।
उपसंहार
शादी धूमधाम से हुई। इस घटना ने नाहक सिंह और उनके परिवार को एक नई सीख दी—
ईमानदारी और धैर्य से हर मुश्किल हल हो जाती है।
गाँव चतरपुर में आज भी लोग यह किस्सा सुनाते हैं कि किस तरह एक साधारण परिवार की ईमानदारी और विश्वास ने उनकी इज़्ज़त और खुशियों को सुरक्षित रखा।
डॉ अमित कुमार बिजनौरी
कदराबाद खुर्द स्योहारा
जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश