जिंदगी के प्रवाह में, तैरना सीख...!
” समय की अनवरत चाल में…
कुछ दूर चला, मगर अपनी चाल में…!
कभी साथ चला…
कभी विपरीत चला…
चला, मगर हर हाल में चला…!
कहीं पर वक्त, मेरे साथ था…
कहीं पर वक्त से टकराव था…!
था वक्त जब, मेरे साथ…
यह सफर सरल-सुकुन-आसान लगा…!
हुए जब, वक्त से टकराव…
तब लगा, चुनौती बढ़ती गई,
ये सफर बहुत घुमाव लगने लगा…!
दोनों ने बहुत कुछ सीखाए…
जिंदगी के रंग-ढंग बताए…!
कुछ कुछ समझ आया…
कुछ समझ से परे था,
और शायद रहेगा भी…!
मेरे नज़र में…
ये सफर कुछ पल का अंतराल है…!
जैसे पूरब से सूरज का उदय होना…
और पश्चिम में जाकर डूबना…!
सूरज की किरणें वही है मगर…
सुबह की किरणें,हर रोज नई सपने जगाती हैं,
और शाम की किरणें धर्य सीखाती है…!
सपने संघर्ष मांगती है…
और धैर्य इंतजार…!
ये सफर, वैसे ही है जैसे,
सूरज किरणें गुजरती है, विभिन्न अवरोधों से…!
कहीं पर मिलती है हमें, धूप और कहीं पर छांव…
कहीं पर पतझड़ और कहीं पर बसंत बहार…!
ये सफर, शायद उतार-चढ़ाव का है…
हर घड़ी, ये उतार-चढ़ाव,
हमें परिपक्व कर जाती है…!
और हर सफर में मजबूती से,
जिंदगी को जीना सीखाती है…! ”
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