मन
आज मन पर लिखने का मन हुआ कि मैं मन पर कुछ लिखूं मन जो कि सभी मानव जाति के पास है। मन एक ऐसी मशीन है जिसके होने से ही सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं। मन सर्व शक्ति संपन्न है क्योंकि किसी ने यह उक्ति कही है कि-
“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत”
यदि मन हार गया तो संसार का हर संभव कार्य असंभव हो जाता है।सारे ब्रह्मांड में उस मनुष्य को अपनी हार नजर आती है। यदि मन ने हारे तो ब्रह्मांड की कोई ताकत किसी को हरा भी नहीं सकती।मन होने पर मनुष्य क्या कुछ नहीं कर गुजरता। दुनिया उसे रोके, थामें, धकेले परंतु मन है कि रुकने का नाम ही नहीं लेता है।मन से ही सभी क्रियाएं संपन्न होती हैं। फिर चाहे वह क्रियाएं अच्छी हो या बुरी हों।सभी मन से ही तो हैं। मन होता है तो मनुष्य लिखता है, खाता है, पीता है,चलता है, उठता है, बैठता है, आता है, जाता है, नहाता है, धोता है, रोता है, हंसता है, गाता है, पहना है, उठता है, मिलता है- जुलता है, बात करता है, काम करता है, कुछ बेचता है, कुछ खरीदता है, वह कुछ भी करता है जो उसका मन होता है। यदि मन नकारात्मक हो तो वह सभी कार्य नहीं करेगा जो उसका मन नहीं चाहता या जिस काम करने को उसका मन ना हो जैसे कि खाने का मन नहीं है, पीने का मन नहीं है, जीने का मन नहीं है, आने का मन नहीं है, यह करने का मन नहीं है उससे बात करने का मन नहीं है,हंसने का मन नहीं है,रोने का मन नहीं है, उठने-बैठने का मन नहीं है,कार्य करने का मन नहीं है,पढ़ने- लिखने का मन नहीं है, फोन पर बात करने का मन नहीं है इत्यादि।
महान सूफी संत ज्ञान के कवि व महान समाज सुधारक कबीर जी भी इस मन की चपेट से नहीं बचे उन्होंने भी इसे महसूस किया और अंत में उनका कंठ रूपी कोयल गा ही पड़ा था कि –
मन मरा न माया मारी, मर मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी कह गए दास कबीर।।
मन की अनंत इच्छाएं मनुष्य जन्म से मृत्यु तक इस मन रूपी मणि के चक्कर में पड़ी रहती है और अपने जीवन का अंत कर लेती है । जिसका मन वश में है वह सबसे बड़ा अमीर व धनवान है और जिसका मन परवश है वह सबसे बड़ा गरीब है। उससे ज्यादा कंगाल कोई भी हो ही नहीं सकता।जब मनुष्य का मन परवश में हो उस पर उसका नियंत्रण न हो, अधिकार न हो तो वह पागल हो जाता है नशेड़ी सा हो जाता है।वह सभी मर्यादाएं, बंधन, रिश्ते, संबंध,अच्छा, बुरा ,छोटा,बड़ा, गलत, सही,अपना, पराया, मूल्य, अमूल्य, सब कुछ भूल जाता है। उस पर मन रूपी राक्षस हावी हो जाता है।उस पर नशा सवार जाता है। मन नशे में डांवाडोल हो जाता है और फिर मन उसको नचाना शुरू कर देता है उल्टा-सीधा, दाएं-बाएं, ऊपर-नीचे,आगे -पीछे, इधर-उधर चाहूं ओर वह जिधर चाहे उस ओर। मन बस में कर मनुष्य महान आत्मा बन जाता है बहुत बड़ा साधक बन जाता है, बड़े से बड़ा कार्य कर गुजरता है। यह सब मन का ही तो कमाल है । जितने भी महान पुरुष महात्मा साधक, विद्वान, वैज्ञानिक, इत्यादि हुए उन्होंने अपना मन उस दिशा में लगा दिया जिधर उन्हें जाना चाहिए था। वे सभी उस दिशा में चले और प्रसिद्धि प्राप्त की। कोई बहुत बड़ा संगीतज्ञ बना, कोई खिलाड़ी, कोई शिल्पकार, कोई वास्तुकार,कोई चित्रकार,कोई राजनेता , कोई अभिनेता, कोई शिक्षक, कोई कलाकार, न जाने क्या-क्या। उनका मन उसी ओर चला गया ।मनोवैज्ञानिक युंग ने मन पर अध्ययन किया वहीं फ्रायड ने भी मन की सत्ता को जाना और इसको वर्गीकृत भी किया। युंग के अनुसार मन को तीन भागों में विभाजित किया गया १.चेतन मन २.अर्द्धचेतन मन ३. अचेतन मन । फ्रायड ने भी इसको वर्गीकृत किया है १.इदम २ अहम ३.पराअहम । एक सुपर पावर शक्ति की तरह है इसका रास्ता सही तरफ हुआ तो यह रचनात्मक कार्य करेगा समाज और दुनिया का विकास होगा सभी कार्य सफल होंगे वहीं यदि यह दूसरे रास्ते पर चल पड़ा तो फिर सर्वनाश ही सर्वनाश है क्योंकि रावण की बहन का मन राम पर आ गया जो पहले से विवाहित थे तो रामायण ही बन गई और रावण का सर्वनाश हो गया। वहीं कौरवों का मन फिसला राज्य पर तो महाभारत हो गई। जितने भी संसार में युद्ध हुए हैं सभी पर मन का ही तो अधिकार था। वे सब मन के वश में हो गए थे। मन सही दिशा में चला तो वेदव्यास ने महाभारत को लिपिबद्ध कर दिया वाल्मीकि ने रामायण को जिन्हें दुनिया पढ़ रही है। इसके सन्दर्भ में मेरा मन मयूर तो नाचकर गा उठता है कि-
मन परवश से इतिहास पलट जाते हैं,
मन वश से ही इतिहास रचे जाते हैं।
अब देखना यह है कि मन को किधर चलना है मन पर किस समय किस दिशा में नियंत्रण करना है। मन पर वश होने से बहुत बड़े डाकू बन जाते हैं, हत्यारे बन जाते हैं, हत्याएं होती हैं, व्यभिचार होते हैं, तमाम तरह की बुराइयां होती हैं। यह मन ही तो है सर्व विनाशकारी, मन चंचल, वेगवान सर्व शक्तिशाली, आदि और अनंत है। जिसने मन पर सही समय पर अंकुश न लगाया तो फिर उसके परिणाम घातक और विनाशकारी ही सिद्ध होते हैं। अंत में कहना यह है की मन को नियंत्रण हीन न होने दें न ही परवश होने दें। मन हमारा है उस पर हमारा अपना अधिकार है अपना अधिकार रखना चाहिए क्योंकि मन से सभी बंधे हैं हमारा मन जिधर चलता है हम उधर ही उसके पीछे-पीछे स्वत: भह चलने लगते हैं। मेरा मन था मन पर लिखने का और लेख लिख दिया। अब आपका मन है पढ़ने का आप जब भी पढ़ें मन से ही पढ़िएगा। धन्यवाद