विराट स्वरूप में बैठे भोलेनाथ,शांत मुख पर छाया है करुणा का स
विराट स्वरूप में बैठे भोलेनाथ,शांत मुख पर छाया है करुणा का साथ।
त्रिशूल, डमरू, नाग का हार,हर रूप में देते हैं जग को उद्धार।।
जटाओं से बहती गंगा की धारा,भस्म से सजी है उनकी काया न्यारा।
ध्यान में लीन, विरक्त, विशाल,हर भक्त को करते हैं निहाल।।
यह प्रतिमा है श्रद्धा का प्रतीक,
साक्षात दिखते हैं महादेव अतीत।
दर्शन मात्र मिटा दे भय-भ्रम,
महाकाल हैं वो, त्रिलोकधर्म।