#तेवरी (देसी ग़ज़ल)
#तेवरी (देसी ग़ज़ल)
क्या नहीं हो सकता साहब…??
(प्रणय प्रभात)
* अब तो काला भूरा भी हो सकता है।।
कागा आज मयूरा भी हो सकता है।।
* दूर से जो दिखता है द्रोणागिरि जैसा।
पास न जाना घूरा भी हो सकता है।।
* दिल दर्पण है ऐसा दुनिया कहती है।
दिल दहशत में चूरा भी हो सकता है।।
* खेल दिखाना काम समय का याद रहे।
एक अधूरा पूरा भी हो सकता है।।
* जो बूरे से बना बताशा कहलाया।
यही बताशा बूरा भी हो सकता है।।
* रोम रोम में कांटे लेकर घूम रहा।
वो इंसान धतूरा भी हो सकता है।।
* हर किस्से का अंत नहीं होता पूरा।
कोई कहीं अधूरा भी हो सकता है।।
* इस क्लजुग में काम मायने रखते हैं।
नाम चोर का नूरा भी हो सकता है।।
* * डमरू सिर्फ़ मदारी की पहचान नहीं।
लाठी लिए जमूरा भी हो सकता है।।
* अलमस्तों ने बता दिया है मस्ती में।
ये तन एक तंबूरा भी हो सकता है।।
😀😀😀😀😀😀😀😀😀