गंगा दोहा
१.
गंगा की गोद में, मिला आत्म का ज्ञान।
तन-मन निर्मल हो गया, पाया जीवन दान॥
२.
भोर भई जब डूबते, श्रद्धा लेकर नीर।
पाप सभी बह जाते हैं, मन हो जाता पीर॥
३.
लहर-लहर में है बसा, युगों-युगों का सार।
गंगा जल से शुद्ध हो, मिटे दुख अपार॥
४.
फूल, अर्घ्य, दीप संग, उतरे घाट किनार।
गंगा स्नान करा गया, जीवन को आधार॥
५.
पुण्य सलिल की शीतलता, करती सबका त्राण।
भारत की यह आत्मा, गंगा का वरदान॥