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21 Aug 2025 · 1 min read

गंवई दोहा

घर में भुंजल भांग नइखे, ..चाल चले मस्तानी।
शरम घोर के पी गईल, …मरल आंख के पानी॥

मेहनती किसान भुख से मुए, .खेत मांगे पानी।
दिन रात झुठ बोल के, अब नेता काटस चानी॥

भाई-भाई में मेल ना बाटे, बहिन भईल परायी।
सब जना मर जईहें तब, खेतवा हमरे जोतायी॥

बगुला के चोंच फसल बा, मछरि के अब जान।
गँवईं छल में फंसले जिन, बाची ना अब प्राण॥

काम धंधा चौपट भईल, ..जमीन बेच के खाय।
घर घर के कुचरो डुभरो, दुअरा दुअरा बतियाय॥

दोसरा के बढ़त देख के, मन ही मन रिसियाय।
कईसे खिंची टांग उनकर, आ कौन करीं उपाय॥

ना केहु के फुर्सत बाटे, ना बाटे लोगन के चैन।
बिना बात झगड़ा ठानके, .बाटे सभ केहु बैचैन॥

पट्टीदार जाल बुनत बा, बिन फंसले ना केहु रही।
कई पुश्त के कसर निकली, का गलत का सही॥

मेल जोल बा उपरे उपरे, ..हियरा में बाटे माहुर।
कहे कवि सब एक समाना, ना निमन ना बाउर॥
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