भीड़ में भी अकेलापन साथ चलता है
भीड़ में भी अकेलापन साथ चलता है
मन का पीड़ा नहीं मन से निकलता है
ये दुनिया की खुशियां और ये बहारें
ना भाता मन को रिश्तेदारों की कतारें
आदमी अपने आप में ही मचलता है
भीड़ में भी अकेलापन साथ चलता है
खुद को ख्यालों में उलझाते हुए
रहे परेशान मुश्किलें सुलझाते हुए
जाने कितने ख्वाब आंखों में पलता है
भीड़ में भी अकेलापन साथ चलता है
संघर्षो में लगातार आगे को बढ़ते हुए
एक- एक कदम मंजिल पर चढ़ते हुए
वक्त का ये पहिया हरदम बदलता है
भीड़ में भी अकेलापन साथ चलता है।
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला -कुशीनगर