पद्म पुरस्कार के लिए नामित होना हमारा सौभाग्य है: डॉ. सुनील चौरसिया 'सावन'
पद्म पुरस्कार (पद्म विभूषण, पद्म भूषण तथा पद्मश्री) के लिए नामित साहित्यकार डॉ. सुनील चौरसिया ‘सावन’ हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। पद्म पुरस्कार के लिए नामांकन के दौरान आपसे कुछ महत्वपूर्ण साहित्यिक प्रश्न पूछे गये। आपने सभी प्रश्नों के सारगर्भित ज़वाब दिये। प्रस्तुत है वह साहित्यिक प्रश्नोत्तरी –
प्रश्न:- सभी पिछले प्रश्नों का सारांश लिखें और आप उन प्रमुख तथ्यों और यूएसपी (अद्वितीय विक्रय बिंदु) पर प्रकाश डालें जो आपको दूसरों से अलग बनाते हैं – जिसमें आपकी अनूठी खूबियाँ, महत्वपूर्ण पद, प्रमुख उपलब्धियाँ और व्यापक प्रभाव शामिल हैं। इससे यह तर्क यथासंभव ठोस रूप से प्रस्तुत होना चाहिए कि उम्मीदवार भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार का हकदार क्यों है।
डॉ. सुनील चौरसिया ‘सावन’ :- मैं मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता हूं। मेरे पिता श्री रामकेवल चौरसिया एक किसान हैं तथा मां श्रीमती उर्मिला देवी गृहिणी हैं। मेरे जीवन का मूल सिद्धांत है, ‘मौका मिला है एक, अनेक काम कर ले। आया है इस जगत में, जग में नाम कर ले।।’ मैं निःस्वार्थ भाव से समाज सेवा करता हूं और अपने सभी कर्तव्यों का सत्यनिष्ठा से पालन करता हूं। इसलिए केंद्रीय विद्यालय संगठन, नयी दिल्ली ने शुरुआत के डेढ़ वर्षीय सेवाकाल में ही मुझे देश के 25 सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों के साथ सम्मानित किया और अपने वेबसाइट पर शिक्षक दिवस के अवसर पर सम्मानजनक स्थान भी प्रदान किया। शिक्षा एवं साहित्य जगत में उत्कृष्ट कार्य करने हेतु मुझे राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। मेरे उल्लेखनीय कार्यों को सम्मानित करते हुए काशी हिंदी विद्यापीठ, वाराणसी ने मुझे विद्या वाचस्पति मानद उपाधि से सम्मानित किया है। बाल्यावस्था से ही मैं साहित्य सृजन करता हूं। अब तक मैंने हजारों कविताएं रची हैं। मैं जो लिखता हूं वही जीता हूं। गूगल एवं यूट्यूब के सहारे मेरी जीवन शैली एवं विचारधारा को सहजता से समझा जा सकता है। पूरे भारतवर्ष के सैकड़ों अनाथ, तलाकशुदा स्त्री, दिव्यांग, किन्नर इत्यादि बेसहारों की सहायता करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है जिससे मेरी अनुपम ज़िन्दगी धन्य है।
ज़िन्दगी बड़ी नहीं गहरी होनी चाहिए। मेरी जिंदगी के अनेक पहलू हैं। मैं सदैव सच लिखता हूं और अपनी लेखनी से समाज में न्याय करता हूं। मुझे न्यायाधीश महोदय ने भी सम्मानित किया है।
मैंने पूर्वोत्तर भारत के गांवों में घूम-घूम कर आम आदमी से संवाद स्थापित कर उनकी जीवन-शैली, शैक्षणिक स्थिति, सामाजिक स्थिति एवं आर्थिक दशा इत्यादि के संदर्भ में शोध किया है और उनको समर्पित गद्य एवं पद्य में सैकड़ों रचनाएं रची हैं।
17 वर्ष की उम्र में राष्ट्रीयता के भाव से सुसज्जित मेरी प्रथम पुस्तक ‘स्वर्ग’ प्रकाशित हुई थी जो बहुचर्चित रही। मेरी दूसरी पुस्तक है ‘हाय री!कुमुदिनी’; जिसका मूल विषय है- स्त्री विमर्श। मेरी हजारों रचनाएं देश-विदेश की सैकड़ों पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। मेरे आधा दर्जन गीत फिल्म स्टूडियो से लॉन्च हो चुके हैं। मेरी कविताओं का प्रसारण आकाशवाणी गोरखपुर एवं वाराणसी से होता रहा है।
यह मेरे 31 वर्षीय जीवन-काल का लघु अंश है। पद्म पुरस्कार के लिए मेरी जीवन शैली विचारणीय है जो आपकी सेवा में सादर प्रस्तुत है। धन्यवाद…