भोग में डूबा हुआ मन प्रभु किनारा दीजिए।
भोग में डूबा हुआ मन प्रभु किनारा दीजिए।
लोक के झूठे सहारों में सहारा दीजिए।
ठौर जग में है कहाँ हरि आपके पद के सिवा।
प्रेम में वंचक जगत तुम नेह- धारा दीजिए।।
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अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’