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19 Aug 2025 · 1 min read

कान्हा की अठखेलियांँ, आती सबको रास।

कान्हा की अठखेलियांँ, आती सबको रास।
प्रेम भरा हो हृदय जहाँ, लगे न नीर की प्यास।।
मटकी मिट्टी से बनी, तन भी मिट्टी जात।
कंकर सम ही पाप है, फोड़े जो आघात।।
माखन मधुरस प्रेम का, श्याम सलोना पान।
अर्थ समझ पाया नहीं, जिसमें है अज्ञान।।
ग्वाल बाल सब संग ले, चलते कृपा निधान।
कहते उत्तम कर्म ही, अपना तुम लो मान।।
भाव शुद्धता का सदा, रखता जो भी ध्यान।
“पाठक” मिलते हैं सहज, उनको कृपा निधान।।
:- राम किशोर पाठक (शिक्षक/कवि)

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