'दीपों की शाम'
आई सजीली, दीपों की शाम
वन से अयोध्या, आये श्रीराम।।
सारे नगर गूँजे, जै जै कार।
द्वारे लगाये हैं, बंधनवार।।
दशरथ दुलारे, लक्ष्मण के भ्रात।
सुंदर सुशोभित है, श्यामल गात।
आनन्द बरसा है, घर-घर घोर।
नाचे मगन होकर, मन का मोर।
भाई भरत ने, पाई सौगात।
आया सुअवसर, खुश तीनों मात।
सौमित्र सिया, बजरंगी हनुमान।
श्रीराम की हैं, गहरी पहचान।
राजा बनेंगे, रघुकुल के वीर।
बाजे मुरलिया, गुण गाये कीर।
जगमग छटा में, नगरी साकेत।
आँगन, गली फिर, चाहे हो खेत।
-गोदाम्बरी नेगी ‘पुंडरीक’
हरिद्वार उत्तराखंड