बहुत दम है अगर बाजुओं में
बहुत दम है अगर बाजुओं में
काहे व्यर्थ कर रहे निज स्वार्थ में
काहे मिट रहें हो चाह की गुमान में
चाहत है जो लड़ने की
हर्ता की पहचान बनो
वीर हो तो स्वागत है
आओ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ो
दुश्मन दस्तक दे रहा
भूख का कुरुक्षेत्र सजा
लड़ना है तो आओ
मिल लड़ो भूख से
जो भूख देश को खा रहा
बहुत दम है अगर बाजुओं में
काहे व्यर्थ कर रहे
जोश अगर बचे तो सजाओं
सबल बाजुओं में
लड़ना है तो आओ लड़ो
मिलकर जाति पात से
जो फूट हमारे घर को जला रहा
बहुत दम है अगर बाजुओं में
काहे व्यर्थ कर रहे
मार रहा है कर में उबाल
है जोश अगर ,
तो निराला तुम्हें ललकार रहा
खेलना है जो खून से
तो आओ फिर सीमा देश का
तुम्हें बुला रहा ,
बहुत दम है अगर बाजुओं में
काहे व्यर्थ कर रहे निज स्वार्थ में।
__संजय निराला