*चोटी कटने का डर*
चोटी कटने का डर
चोटी काटने का भारत में केस 23 जून 2017 को आया। जब से यह केस आया तब से सभी महिलाएंँ धीरे-धीरे सहमी- सहमी रहने लगी। पुरुष भी इस बात से चिंतित थे, कि कहीं उनकी पत्नी, मांँ या बहन आदि की चोटी न कट जाए। यह चोटी कटने की घटना पूरे भारत में आग की तरह फैल गई। कोई कहती एक काली बिल्ली आती है और चोटी काट कर चली जाती है। कोई कहता कोई चुड़ैल काट कर जाती है। कोई कहता भूत काट कर जाता है। सभी अपने-अपने तरह से सोचते थे और अपने तरह से तरह-तरह की बातें बताते थे। कुछ व्यक्ति मेरी तरह भी थे, जो सोचते थे शायद यह घटना किसी ने जानबूझकर बनाई है और डराने हेतु बाल काटे होंगे। ऐसे लोग बहुत कम थे। क्योंकि यहांँ लोग इतने अंधभक्त हैं, कि बिना सोचे- समझे, बिना तर्क- वितर्क के ऐसी बातों में विश्वास कर लेते हैं और ये बेचारे भोले-भाले लोग इसका खुद शिकार हो जाते हैं।
इस घटना के फैलने से महिलाओं ने अपने आप को घर में बंद करके रखना शुरू कर दिया। रात को कभी वॉशरूम भी गई तो ग्रुप के साथ। उस समय वॉशरूम भी तब गई जब बात सर से ऊपर उतर जाती थी। महिलाएंँ कितनी इतनी डर गई, कि जरा सी इससे संबंधित खबर मिलने पर दिन में पंचायत तक हो रही थी। चोटी कटने की घटना से महिलाएंँ इतनी डर चुकी थी कि वह कहीं आज अभी नहीं रही थी और रात को सोते समय भी यह ध्यान रखती थी, कि कहीं बालों की चोटी बिस्तर (खाट) से नीचे तो न लटक रही है। जरा सोचो ऐसी अफवाहें चारों ओर फैल रही हों। महिलाएंँ, लड़कियांँ, पुरुष बाल- बच्चे एवं सब इससे भयभीत हो और रात का समय हो और कोई तुम्हारे ही साथ रहने वाला व्यक्ति अंधेरे में तुम्हें टच कर दे तो मैं मानता हूंँ, बिस्तर तो गीला हो ही जाएगा साथ ही हार्ट अटैक भी हो सकता है। जब यह चोटी काटने की घटना पूरे जोरों पर थी तब चोटी कटने पर गाने भी बनाए गए थे-जैसे एक गाना बड़ा प्रसिद्ध हुआ “गंजी हो गईं भाभी सारी बारी आ गई ताइयों की, चोटी कट गई लुगाईयो की।” अंधविश्वास के मामलों में अगर अपने भारत में देखा जाए तो महिलाएंँ सबसे जल्दी इस पर विश्वास करती हैं और खुद अधिकतर इसका शिकार भी होती हैं, पर इसका यह मतलब कतई नहीं कि इससे पुरुष परेशान नहीं होते या पुरुष अंधविश्वासी नहीं होते वह भी होते हैं क्योंकि वह कहीं न कहीं इनसे जुड़े होते हैं। अंधविश्वासी होना और किसी भी घटना या अफवाह पर तर्क- वितर्क न करके किसी पर विश्वास कर लेना कम पढ़े-लिखे या अशिक्षित समाज की पहचान होती है। अर्थात कहीं न कहीं शिक्षा का अभाव होने के कारण लोग ऐसी घटनाओं का प्रचार- प्रसार बिना सोचे समझे और आंँखें बंद करके, करते चले जाते हैं।
चोटी कटने की जब खूब चर्चा हो रही थी। चारों ओर लोग भयभीत थे। उस समय महिलाएंँ इतनी घबराई हुई थी, कि अगर रात में किसी ने गलती से छू भी लिया तो उनकी जान निकल जाती थी। बाल महिला के शोभा होते हैं और वे ही न रहे तो वे अपने आप को सुंदर नहीं कह सकतीं बता सकतीं या देख सकतीं हैं। इसलिए अधिकतर महिलाएंँ इस घटना से बहुत डरा हुआ और छला हुआ महसूस कर रही थी। अगर रात को किसी ने थोड़ा बहुत मजाक भी कर दिया तो उनके हाड़ फेल होने को तैयार हो जाते थे। इसके अलावा और बाकी हमारा मीडिया जिंदाबाद है, जो खबर दिखानी जरुरी होती हैं उन्हें न दिखाकर मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाकर बेमतलब की खबरों को लोगों के जहन में भर देता है। अधिकतर मीडिया कर्मी ऐसे ही हैं। इसके कारण भी लोग इतने डरे हुए और सहमें हुए थे क्योंकि लोग घर पर टीवी चैनल देखते हैं और जो बताया जाता है उसे आंँखें बंद करके मानते जाते हैं। वैसे चोटी काटने से इस प्रकार दर्द नहीं होता जैसे शरीर का अन्य भाग कट जाने से होता है। कटी हुई चोटी कुछ ही दिनों में पूरी हो जाती है। पर हांँ बालों से होने वाली सुंदरता पर इसका नेगेटिव प्रभाव जरूर पड़ता है।
मेरी बड़ी बहन जहांँ उनकी शादी हुई है। वहांँ की बात है। उसकी ससुराल में जेठानी की लड़की और उसकी भी एक जवान लड़की रुकी हुई थी। बरसात के दिन थे। बिजली गई हुई थी क्योंकि बरसात के मौसम में तारों में फाल्ट होने से घरों में चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था। उसी समय की यह बात है, जब चोटी काटने की घटनाओं का चारों ओर प्रचार- प्रसार हो रहा था। बहन की जेठानी की लड़की की लड़की लगभग रात के बारह बजे होंगे, सभी बहुत गहरी नींद में सोए हुए थे। तभी अचानक वह लड़की मेरी बहन की जेठानी अर्थात अपनी नानी के पास आयी और उसने उस अंधेरी शांत रात में अपनी नानी के ठीक पीछे टच करके बोली नानी (उसके कहने का ढंग थोड़ा अजीब था, जो टच करके नानी कहने के बाद तुरंत शांत हो गया) दूसरा उसके बाल खुले हुए थे, जैसे ही उसने अपनी नानी को टच किया। उसकी नानी की चीख निकल गई, कि आज तो चोटी काटने वाली चुड़ैल मेरे पास आ गई। वह बेहोश होकर जमीन पर गिर गई और लगभग 1 घंटे में होश आया। जैसे ही नानी की चीख और जमीन पर गिरने की आवाज हमारे जीजाजी के भाई और जीजा जी ने सुनी तो वे एक मोटा डंडा लेकर उस लड़की की तरफ दौड़े। इससे पहले की डंडे से वार होता, वह तुरंत साफ शब्दों में बोली कि मैं हूंँ “निर्देश”! तब जाकर सबके दिलों की धड़कनें नॉर्मल हुई और बहुत बड़ा हादसा होने से बच गया। उस समय दोनों भाई मोटा डंडा लेकर अलग-अलग दिशाओं में भाग रहे थे।
इस घटना से हमें भी सीख लेनी चाहिए, कि अंधविश्वास में आदमी अपना विवेक शून्य कर लेता है और वह,वह कर जाता है, जिससे परिवार, समाज और आने वाली पीढ़ी भी गुलाम होती चली जाती है। इसलिए ऐसी अफवाहों, घटनाओं से हमेशा बचकर रहें और अपने विवेक का इस्तेमाल करके, विज्ञान- तर्क आदि के माध्यम से करके भी किसी भी चीज पर विश्वास करिए। समाज में कुछ न कुछ झूठी अफवाहें फैलती रहती हैं हमें उनसे डरने की बजाय तर्क- वितर्क अपने विवेक के आधार पर पहचान करके उन पर विश्वास करना चाहिए और हमें ऐसी खबरों को प्रसारित करने से बचना चाहिए।