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16 Aug 2025 · 1 min read

दोस्ती कोई प्यार नहीं फरेब है,

दोस्ती कोई प्यार नहीं फरेब है,
उसकी चाल में समझ न सका,
इस्तेमाल करके फेंक दिया कूड़े की तरह,
दोस्ती कालिख है, जिसे मैंने माथे पर संजोया था,
उसकी कालिख मैं समझ न सका,
साथ बैठता था, पर डसता गया,
उसका ज़हर मैं समझ न सका,
छोड़ के चला गया था मुझको,
न कभी फोन, न कोई तार,
उसकी यह खामोशी में समझ न सका,
चेहरे पर मोहक हो गया था मैं,
बातो मे फस गया था मैं,
सबसे बड़ी भूल…..
उसका असली चेहरा में देख न सका,
उसकी चाल में समझ न सका,
—— प्रणव राज

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