भगतसिंह
ऐ भगतसिंह जब तक उर्मियां
घटाओं में रहेंगी
तेरे ख्यालों की बिजलियां
हवाओं में रहेंगी…
(१)
तेरा वो बदन जो फानी था
फांसी पे चढ़के पाक हुआ
चिता में जलके राख हुआ
धरती में मिलके ख़ाक हुआ
लेकिन अनमोल निशानियां
युवाओं में रहेंगी…
(२)
समय के जलते सवालों पर
दिल के ख़ून से लिखी हुईं
उम्दा दलीलों से सजी हुईं
वाजिब हवालों से भरी हुईं
इंकलाब की ये कहानियां
सहराओं में रहेंगी…
(३)
खाने-पीने से ज़्यादा तुम्हें
किताबें पढ़ने का शौक़ था
ख़ुद को गढ़ने का शौक़ था
बुलंदी चढ़ने का शौक़ था
बेबाक सियासी बयानियां
फिज़ाओं में रहेंगी…
(४)
तुमने ख़ूब उन्हें लानत भेजी
समाज में जिनने फ़र्क किया
अवाम का जीवन नर्क किया
भारत का बेड़ा ग़र्क किया
सदियों ऐसी कदरदानियां
चर्चाओं में रहेंगी….
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