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15 Aug 2025 · 3 min read

**चाय के साथ रिश्ते की मिठास**

“चाय के साथ रिश्ते की मिठास”

मुंबई की एक कॉलोनी में रहने वाला रवि वकालत का काम करता था ,और उसकी दो मुंहबोली बहनें डॉक्टर थी।नैना और जया बचपन से ही एक-दूसरे के बेहद करीब थे। खून का रिश्ता नहीं था, लेकिन दिल से जो रिश्ता जुड़ा था, वह किसी भी सगे रिश्ते से कहीं ज्यादा गहरा था।

रवि हर शाम अपने कॉलेज के बाद नैना और जया के घर आकर कुछ न कुछ मांग ही लेता — कभी मोबाइल चार्जर, कभी होमवर्क की कॉपी, तो कभी… चाय और समोसे!

“अरे बहन, तू तो जानती है आज कितना थक गया हूँ… बस दो समोसे और एक प्याली चाय दिला दे…” रवि ने रोज की तरह मासूमियत से कहा।

नैना भौहें चढ़ाते हुए बोली, नहीं इस उम्र में हम समोसा खाकर क्या करेंगे।

लेकिन जया हँसते हुए बीच में बोली, “चलो बहन, बना देते हैं… वैसे भी समोसे खाने का मन कर रहा था, बस तू बहाना दे गया।”

नैना भी मुस्कुराई, “ठीक है।

रवि ने कान पकड़कर कहा, “वादा करता हूँ, बस आज के बाद हर समोसे के बदले तुम्हें एक बड़ा गिफ्ट मिलेगा।”

चाय बनी, समोसे तले गए, और तीनों भाई बहन छत पर बैठकर खाते-पीते हँसी के ठहाके लगाते रहे। रवि हर बार की तरह मजाक करता, “तुम दोनों तो मेरी अच्छी बहनें हो, जो बिना शर्त प्यार करती हो – और हाँ, चाय भी अच्छी बनाती हो!”

नैना ने चुटकी ली, “समोसे खाने का बहाना ढूंढता है और भावनात्मक ड्रामा करता है।”

लेकिन… ये उनकी दोस्ती की खूबसूरती थी — जहां मजबूरी नहीं, अपनापन था।

रवि जानता था कि वो उन्हें परेशान कर रहा है, और बहनें भी जानती थीं कि वो ऐसा सिर्फ नजदीकियों के बहाने करता है। कोई नाराज़ नहीं होता, क्योंकि ये ‘मजबूरी’ नहीं, प्यार से भरी हुई मिठास थी — चाय और समोसे के साथ रिश्ते की ।

तीनों हँसते-हँसते लोटपोट हो गए।
और यूँ ही, एक और शाम चाय और समोसे की खुशबू में रिश्तों को और गहरा कर दिया।

समय बीतता गया। कॉलेज खत्म हुआ, सब अपनी-अपनी जिंदगी में थोड़ा व्यस्त हो गए, लेकिन वो बचपन वाली दोस्ती — वो चाय-समोसे वाली यारी अब भी उतनी ही मजबूत थी।

रवि कोट से आते-आते थका-हारा होता, लेकिन जैसे ही जया या नैना का कॉल आता –
चेहरे पर वही पुरानी मुस्कान लौट आती।

एक दिन रवि को अचानक एक आइडिया आया।

“अब बहुत हो गया, हर बार मैं ही समोसे के लिए मजबूर करता हूँ… अब मेरी बारी!”

रवि ने प्लान बनाया — शनिवार को जया और नैना को अपने घर बुलाया, बहाना किया – “कुछ काम है, ज़रूरी है, ज़रा जल्दी आ जाना।”

नैना बोली, “फिर से समोसे बनवाने की स्कीम है क्या?”
रवि ने हँसते हुए कहा, “इस बार नहीं, बस आओ तो सही।”

शाम 5 बजे जब दोनों आईं, दरवाज़ा खुलते ही चौंक गईं।

डाइनिंग टेबल पर गर्मागर्म चाय, समोसे, सेंडविच, और एक प्यारी सी सजावट!
पीछे दीवार पर एक हाथ सेसे बना पोस्टर —
“मेरी प्यारी बहनों के लिए — चाय पार्टी रवि भइया की तरफ से!”

जया की आँखें नम हो गईं, नैना हँसते हुए बोली, “आज तूने इमोशनल कर दिया ..”

रवि ने दोनों को बैठाया, प्लेट पर समोसे परोसे, चाय का प्याला थमाया और कहा।

“तुम दोनों ने मेरी हर भूख, हर थकावट, हर मूड को समझा।
अब थोड़ा सा हक़ तो मेरा भी बनता है ना?”

तीनों ने मिलकर उस दिन को यादगार बना दिया। पुराने किस्से दोहराए गए, ढेर सारी हँसी बंटी, और सबसे बढ़कर — वो रिश्ता जो समोसे और चाय से शुरू हुआ था, अब ज़िंदगी की मिठास बन चुका था।

“अब से हर महीने एक ‘चाय-समोसा डे’ — सिर्फ हम तीनों के लिए!”

नैना और जया ने एक साथ कहा —
“डन! लेकिन अगली बार मिठाई भी चाहिए!”

और इस तरह दोस्ती, अपनापन और समोसे – तीनों का स्वाद और भी गहरा हो गया।
डॉ मनोरमा चौहान
(मध्य प्रदेश हरदा)

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