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11 Aug 2025 · 1 min read

जवां है जिस्म

जवां है जिस्म रूह पर निढाल है, कमाल है!
लहू में क्यों नहीं तेरे उबाल है, कमाल है!

भरी हुई है वादों से ये थाल है, कमाल है!
मगर न इसमें रोटी है न दाल है, कमाल है!

जिसे हमारी इक ख़ुशी भी देखना मुहाल था
हमारी मौत पर उसे मलाल है, कमाल है!

तुम्हारी बद ज़ुबानी पर तो मुतमईन¹ हैं सभी
हमारी नेक बात पर बवाल है, कमाल है !

ग़रीब का छुआ हुआ हराम है, हुज़ूर को
मगर ग़रीब का लहू हलाल है ,कमाल है !

हम अपने इक सवाल के जवाब के थे मुतज़िर²
सवाल के जवाब में सवाल है, कमाल है!

सुना है ग़मजदा बहुत हैं वो हमारे हाल पर
उन्हें हमारी फ़िक्र है ख़याल है, कमाल है!

दरख़्तों³ ने लिबास-ए-बर्ग-ओ-गुल⁴ उतारे है ‘अनीस’
ख़िज़ाँ की रुत5 भी मौसम-ए-विसाल6 है, कमाल है!
– अनीस शाह ‘अनीस ‘
1.संतुष्ट 2.प्रतीक्षारत 3.पेड़ों 4.फूल पत्तों के कपड़े
5.पतझड़ का मौसम 6.मिलन का मौसम

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