चुन चुन कर श्री राम ने, भांति भांति के फूल।
चुन चुन कर श्री राम ने, भांति भांति के फूल।
श्रृंगारित सिय को किया, निज अभिरुचि अनुकूल।। निज अभिरुचि अनुकूल, रूप कागा धर आया।
चोंच मार सिय चरण, जयंता लहू बहाया।
किया सींक संधान, काग उड़ चला हृदय गुन।
मिला न कोई ठौर, राम हनते रिपु चुन – चुन।।
नारद मिले जयंत से, दीन दुखी अति जान।
शरणागत हो राम के,राय हमारी मान।।
राय हमारी मान, दया के सागर प्रभु जी।
चरण शरण में गए, करें रक्षा रघुवर जी।
दण्ड दिए प्रभु राम, नेत्र कर एक नदारद।
रख जयंत का प्राण, गए निज गृह मुनि नारद।।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव “प्रेम “