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9 Aug 2025 · 1 min read

बहुत कुछ लुटा दिया, ऐ ज़िन्दगी, तेरे हमराह होकर,

बहुत कुछ लुटा दिया, ऐ ज़िन्दगी, तेरे हमराह होकर,
अब जीना चाहता हूँ, अपनों की पनाह होकर।

उम्र की शाम ढली, साँसें भी थमने लगी हैं,
बस चाह है, ये लम्हे चलें, उम्र की राह होकर।

तेरी दौड़ में भूला था मैं अपने ही चेहरे,
अब ढूँढ रहा हूँ खुद को, उनकी निगाह होकर।

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