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8 Aug 2025 · 1 min read

कुण्डलिया छंद

🦚
परवाने आने लगे, फिर भी किया न चेत ।
अब बैठा पछता रहा, चुगा चिड़ी ने खेत ।।
चुगा चिड़ी ने खेत, बचे दाने अब थोड़े।
इनको भी चुग जाय, उसी ने जो हैं छोड़े
कहे ‘ज्योति’ कर चेत, न कर अब और बहाने।
बुझ जाता जब दीप, नहीं आते परवाने ।।

राधे…राधे…!
🌹
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !

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