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7 Aug 2025 · 1 min read

वरुणा का प्याला

///वरुणा का प्याला///

तुम वरुणा हो प्याले की,
वह लिए वरूणा का प्याला।
वरुणा पीकर हो जाता है,
मदमस्त सदा ही पीने वाला।।

न ध्यान रहता स्वमानों का,
न ध्यान रहता अपमानों का।
चिंता मुक्ति की लालसा में,
पीता वह वरुणा का प्याला।।

लगता उसे वरुणा ही मधु संग्रह है,
जहां नहीं कोई कटुता का अस्तित्व।
वरुणा पीकर भी वह पीते जाता है,
गिरता उठता गिर जाता पीने वाला।।

हरदम वरुणा का रहता आवेश,
आवेश भरा ही तन मन जीवन ।
नित ठोकर खा ध्यान उसी का,
करता है वरुणा का पीने वाला।।

एक आस यही है उसे सदा,
संग रहे वरुणा का प्याला।
फिर कोई लवलेश दंश नहीं,
समझता उसे जीवन शाला।।

स्वरचित मौलिक रचना
रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)

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