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7 Aug 2025 · 1 min read

आँगन की ख़्वाहिश है कि

आँगन की ख़्वाहिश है कि
परिंदे हर शाम लौट आए
बड़ा सुना-सुना सा लगता है
इक जिस्म इक रुह के बग़ैर

©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”

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