"बाबा के जाल से दूर रहो"(अंधभक्ति पर एक प्रहार)
“बाबा के जाल से दूर रहो”(अंधभक्ति पर एक प्रहार)
भीड़ लगी है पंडालों में, धूप-घाम सब भूले,मुक्ति मिलेगी बाबा बोले, औरतें सपने पाले।
महादेव के नाम पे, माला फेरते जाते,सच्चे रिश्ते, घर के नाते, पीछे कहीं छूट जाते।।
दो जाने गईं भीड़ में, फिर भी कथा न टाली,प्रसाद में ज़हर मिला या अंधभक्ति की थाली?
सास-ससुर की सेवा कर ले, स्वर्ग यही मिल जाएगा,पर बाबा के एक बुलावे पे, सब कुछ छोड़ वो आएगा।।
न नौकरी की चर्चा होती, न शिक्षा की बात चले,सिर्फ़ उपायों की दुकानें हैं, आस्था के जाल पले।
भक्ति नहीं अब धंधा है ये, कथा के नाम पे धंधा,औरत हो या आदमी, बनते जा रहे हैं अंधा।।
पढ़े-लिखे भी अब झुके हैं, डिग्रीधारी भी लाचार,पैसे दे के पुण्य खरीदे, कहे ‘बाबा’ बारम्बार।
शादी, बच्चा, नौकरी सब, कथा से जोड़े जाएं,औरतें रोएं, पुरुष झुकें, सब उपाय अपनाएं।।
मंदिर नहीं अब धाम बने हैं, मुक्ति की सीढ़ियाँ बोली,संत नहीं अब व्यापारी हैं, मन की माया खोली।
धर्मग्रंथ का सार न जाने, बस एक कहानी गाएँ,इमोशन की रस्सी बांधें, और दान बटोर लाएं।।
हे भारत की जागरूक जनता, अब आँखें खोलो ज़रा,भगवान वहीं है घर में तेरे, न दौड़ किसी धरा।
सेवा कर सच्ची माता-पिता की, बच्चों संग मुस्काओ,भक्ति वहीं जो प्रेम में हो, दिखावा मत दिखाओ।।
बाबाओं से दूर रहो, जो स्वार्थ में डूबे हैं,वो नहीं देंगे मोक्ष तुम्हें, बस लूटने में खूबे हैं।
सच्चा संत न भीड़ बटोरें, न सोने का सिंहासन,वो तो चले सादगी से, न मांगे कोई दान-वसन।।
तो छोड़ अंधविश्वास के धागे, खुद को पहचानो,कर्म करो, प्रेम करो, अपने मन को जानो।
भगवान तुझमें, मुझमें है, न बाबा की मोहताज,सच की राह पकड़ सखा, यही जीवन की आज़माइश।।