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7 Aug 2025 · 1 min read

भोजपुरी ?

हमनी भोजपुरिया भइया लोगन के बड़का अफसोस बा — कि आपन भाषा हजार साल से जिंदा बा, बाकिर किताबन में ओकरा के आजुओ ‘मरल’ बतावल जाला। कहे के त भोजपुरी ‘लोकभाषा’ ह, बाकिर शिक्षा प्रणाली में ओकरा के ‘लोकलूचक’ आ ‘गंवई’ कह के कोना में ढकेल देहल गइल बा।

सभे कहेला – “मध्यकाल में साहित्य के भाषा रहल अवधी, ब्रजभाषा आ मैथिली।”
अच्छा! त ई बताईं — जे भोजपुरी में गवना के गीत आजुओ बियाह के मंडप हिला देला, ऊ का हजार साल से खाली हवा में गूंजत रहल?
का ऊ भाषा खाली कोठा पर गवले ‘लोकगीत’ ह, जेकरा के दरबार में घुसईबे नइखे?

काहे भाई? का भोजपुरी में कविता ना लिखाइल? गीत ना गवाइल?
का भिखारी ठाकुर खाली नाटक कर रहल रहले? ऊ जे बोले, ऊ भाषा ना त?
“बिदेसिया” के संवाद सुनीं — उहू में त भावना के समुंदर बा।
बाकिर साहित्य के चौकीदार कहेलन — ई त भोग-विलास आ मनोरंजन वाली लोकभाषा ह।

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