माला बनाने बाला ख़ुद मोतियों सा बिख़र गया।
माला बनाने बाला ख़ुद मोतियों सा बिख़र गया।
अपनी ही हंसी के दायरे से कोसो दूर हो गया है।।
बैठा है मोतियों के ढेर पे मग़र धागा कहीं खो गया है।
कश्ती तो सामने थी मग़र पतवार का सिरा ढूँढता रह गया है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”