हे ईश्वर!
प्रकृति जब रुठती है,
तो आफत बन कर टूटती है,
उत्तरकाशी के धराली में दिखा यह मंजर,
लगा जैसे बिकराल हो गया हो समंदर!
किए जा रहे थे हम दोहन प्राकृतिक सशांधनो का,
किए जा रहे हैं आमंत्रित विनाश के वाहनों का,
एक झटके में तबाह हो गया,
एक गांव, कस्बा या कहें एक शहर,
आलीशान इमारतों पर टूटा कहर!
लील गया न जाने कितनी जानों को,
बहा ले गया सैलाब निर्दोष इसांनो को,
हे ईश्वर ये क्या हो रहा है तेरे आंगने में,
क्यों हो रही है कोई चूक तेरे जागने में!
इतना तो निर्मोही और क्रूर न था तू,
क्यों मासूमों की जान का दुश्मन बन बैठा है तू,
रहम कर रहम कर अपने नादानों पर,
ना कर ऐसा कोई करम अपने संतानों पर!