मत छीनो मुझसे.. "मैं होने का साहस
मत छीनो मुझसे.. “मैं होने का साहस
सबकी शिकायतें इसरार(इशारा) कर रहे कहां हो तुम?और तुम्हारे सवाल?
अनबुझे सवालो के हल खोजती बस उलझी सी बैठी है जिंदगी मरने जीने के दरम्यान ,
ढूंढ ती रहती है निगाहे सुकून के चंद पल ….और बस सबको नाराज करती जाने कहां …भाग रही जिंदगी…
तानो , उलाहनों फब्तियों से झुलस चुकी सब्र के पर …
थक कर बैठी है निढाल…
स्याह अंधेरी…. रात का सूरज भी.. जाने.. कहां ठहर गया
उन टूटे परों से फिर भी नापती रहती आकाश
जाने क्यों देना पड़ता खुद के अस्तित्व का प्रमाण..
मन मारते मारते हृदय के कोने दुबका बैठा नन्हा आस का बच्चा
समेट कर सारी संवेदना मन मारना सीख रहा है
क्यों होते है प्रतिमान लड़कियों के सामने
जाने कब होगा उनके सामने मुक्ताकाश
बस कुछ प्रश्न अनुत्तरित सा रह जाता है
फिर भी संघर्ष पथ का पखेरू ,
टूटे परों से नापता है आकाश..
नहीं चाहिए उसे सुगम पथ ,
दे दो अनगिनत कंकरीले रास्ते
बस छीनो मत उससे,उसकी निश्चलता …और कोरे सपने …
और मुझसे.. “मैं होने का साहस