दोहा चौका. . . . विविध
दोहा चौका. . . . विविध
किसको किसकी है पड़ी , सब अपने में मस्त ।
कौन सोचता हो गया, किसका सूरज अस्त ।।
गिर कर उठने का नहीं, जिसे जगत् में ज्ञान ।
ठोकर में रखते उसे, संसारिक इंसान ।।
स्वार्थ शूल हर बात में, रखता है इंसान ।
कितनी होगी वेदना, कहाँ करे वह ध्यान ।।
सोच समझ कर बोलना, अपने मन की बात ।
क्या जाने किस बात पर, कोई दे आघात ।।
सुशील सरना / 1-8-25