अजब खाई है अपने दरमियाँ जो भर नहीं पाती
अजब खाई है अपने दरमियाँ जो भर नहीं पाती
अना तुझमे जो है तस्लीम वो तू कर नहीं पाती
समा पागल हुई जाती है परवाने की हसरत में
मगर उसको तो जलना है वो आखिर मर नहीं पाती
अमावस से वो पूछे है नज़र चन्दा नहीं आया
गणित कमजोर है उसकी वो गिनती कर नहीं पाती
लहर ने चूम कर माथा किया कश्ती को जो रुखसत
निशानी कश्ती की वो खोजती है पर नहीं पाती
बहुत छोटे मसाइल थे सुलझ सकते थे वो लेकिन
बहुत छोटी ख़ला भी बिन भरोसा भर नहीं पाती
न जाने कितने किरदारों ने डाला है असर मुझपर
मगर सीरत ढली किस में निशानी कर नहीं पाती
बहुत दिन बाद गुलशन में बहारों ने है दी दस्तक़
ज़रा सरमा के वो बोलीं के आ अक्सर नहीं पाती