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30 Jul 2025 · 2 min read

मातृत्व : शक्ति या मजबूरी ?

बच्चों की मां कहो या कहो पति की अर्धांगिनी।
केवल दो रिश्ते ही है, उसके जीवन की संगिनी।।

अब ये रिश्ते ही, हैं उसकी पहचान,
और घर ही है उसके कार्य का स्थान,
ना है उसे अब कोई प्रमोशन की चिंता ,
ना निलंबन का डर ना कोई व्यस्तता !!

निपुणता की उस कार्य में,
न है कोई आवश्यकता,
बस भावनाओं की चक्की में
पिसते रहने की है विवशता ।

जीवन है उसका जैसे दिये की बाती,
रोशन कर अपनों को, स्वयं मिटती जाती।।

किंतु उसकी जिम्मेदारियों का, अब ना कोई है अंत,
मातृत्व की विवशता का, दिखा नया ढंग,
नैतिक मूल्यों के प्रांगण में वह नित,
काट रही अपना बोझिल जीवन ।

आखिर कैसे कटती ऐसे जीवन की गाड़ी,
कर्तव्यों के बोझ तले पीस रही है हर नारी ।

बेशक ही उसके है, घर के काम यह सारे !
किंतु एक नजर उसकी, स्थिति पर भी डालें ।

उसे भी जाना है उस पार,
तोड़ कर सभी दीवार !
सपने हैं उसके भी खास,
किंतु जब न दिया किसी ने साथ ।।

सौंप कर सपनों को, अपने मन की अलमारी में,
रम गई वह भूले भटके घर की चारदीवारी में ।
सबका ख्याल रखने में, उससे ना होती जरा भी चूक,
किंतु अपने आप को, वह बिल्कुल गई है भूल।।

दबाव उस पर भी हर पल बढ़ता जाता है ,
सभी की जरूरत को, समय पर पूरा करना है।

तो आखिर कब तक इस तरह की कहानी दोहराई जाएगी?
मां स्वयं की ही बनाई दुनिया में अस्तित्वविहीन कहलाएगी?

कब तक यह क्रम ऐसे ही चलता जाएगा ?
बेबस मजबूर मां की कहानी को दोहराया जाएगा !
अब समय की मांग है, नई कहानी गढ़नी चाहिए ,
घर की जिम्मेदारी भी सबको, एक साथ उठानी चाहिए ।

बेलन, झाड़ू हो अब सबके हाथ,
कार्यालय भी जाएं सब मिलकर साथ ।
तभी बनेगी बिगड़ी हर एक बात ,
परिवार का भी होगा समग्र विकास ।।

सीखो बच्चों थोड़ा, तुम भी समायोजन,
घर के कामों में भी दो, तुम अपना पूरा मन ।
अगर आज अपने कंधे, दूसरों पर टिकाओगे !
भविष्य में जीवन- यापन, तुम कैसे कर पाओगे?

इसी चक्र में एक दिन, तुम भी फंसे रहोगे !
और शायद मेरी तरह वेदना लिख रहे होंगे !

इस समस्या पर विचार करो,
सूक्ष्म अवलोकन कर राय गढ़ो,
जब खड़े हो अपने पैरों पर ;
तब क्यों निर्भर हो औरों पर ??

बेशक अपना जीवन सँवारों तुम !
किंतु थोड़ा कार्यभार भी संभालो तुम।।
एक मां को भी, दो पल का सुकून मिले,
उसे भी आत्मनिर्भर बनने का सुयोग मिले ।।

हाथ जोड़कर बच्चों से, एक मां की है अपील,
अपनी व्यस्तता दिखाने की, ना देना कोई दलील !
घर के कामों में खुद को, भी करो तुम शामिल ;
सब रहेंगे खुश साथ में, न रहेगी कोई मुश्किल ।
अन्यथा एक मां का होगा, पुनः व्यक्तित्व धूमिल !
टूटेंगे उसके हौसले, ना मिलेगी फिर कोई मंजिल !!

मातृत्व बने शक्ति या मजबूरी
एक पहल है जरूरी 🙏🙏

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