प्रेम - मनहरण घनाक्षरी
अजनबी पंछी मिले
मिलते ही दिल खिले
साथ साथ उड़ चले
प्रेम तो जताएँगे।
दिल हुआ बेकरार
मिल गया मुझे प्यार
खुशियाँ मिली हजार
जश्न तो मनाएँगे।
जिसे चाहा मिल गया
प्रेम पुष्प खिल गया
विरह भी मिट गया
साथ तो निभाएँगे।
टेढ़ी मेढ़ी राहों पर
संग संग चल कर
उर में धीरज धर
दुखों को मिटाएँगे।
#स्वरचित एवं मौलिक रचना
#डा. राम नरेश त्रिपाठी ‘मयूर’