दुख के नून आंकर हे
एसों बरसा कहूँ रोंठ,
त कहूँ-कहूँ पातर हे ।
कोनो कोती जरइ सर गेहे त,
कोनो कोती चातर हे ।।
जुग-जुग ले ये खेला करत
आए पानी, बादर हे,
जिनगी के थारी म,
दुख के नून आंकर हे।।
तभो ले देख धरती ह,
कइसन हरियागे हे।
पहिली तिहार हमर,
हरेली ह आगे हे ।।
नांगर के पूजा होवत हे,
खपावत हे गेड़ी।
खेलत हें फुगड़ी, गोटी,
महाउर म सम्हरे हे एड़ी ।।
सुकाल के आस करत हमु,
चलव हँस डारिन, मानिन तिहार ।
सबो झन ल हरेली के,
हाथ जोर जय जोहार…