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24 Jul 2025 · 1 min read

दुख के नून आंकर हे

एसों बरसा कहूँ रोंठ,
त कहूँ-कहूँ पातर हे ।
कोनो कोती जरइ सर गेहे त,
कोनो कोती चातर हे ।।

जुग-जुग ले ये खेला करत
आए पानी, बादर हे,
जिनगी के थारी म,
दुख के नून आंकर हे।।

तभो ले देख धरती ह,
कइसन हरियागे हे।
पहिली तिहार हमर,
हरेली ह आगे हे ।।

नांगर के पूजा होवत हे,
खपावत हे गेड़ी।
खेलत हें फुगड़ी, गोटी,
महाउर म सम्हरे हे एड़ी ।।

सुकाल के आस करत हमु,
चलव हँस डारिन, मानिन तिहार ।
सबो झन ल हरेली के,
हाथ जोर जय जोहार…

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