कबीरदास जी एक महान संत:मूर्धन्य कवि थे
कबीरदास जी एक महान संत : मूर्धन्य कवि थे
कविगुरु संतोष कुमार मिरी “विद्या वाचस्पति”
छत्तीसगढ़_कबीर दास जी एक महान संत और मूर्धन्य कवि थे। जन्म सन 1440 के आसपास वाराणसी में हुआ था। उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम जुलाहा परिवार में हुआ था क्योंकि कबीर दास जी के माता पिता की स्पष्ट जानकारी नहीं हैं।कम उम्र में ही आध्यात्मिक ज्ञान अपने गुरु रामानंद से शिक्षा प्राप्त की।
कबीर दास जी तत्कालीन समय में शिक्षा प्राप्त नहीं किए थे, लेकिन उन्होंने संतों के संगति करके वेदांत,उपनिषद और योग का ज्ञान प्राप्त किया।शिक्षा के बड़े बड़े शिक्षाशास्त्री उनके सामने नतमस्तक होते थे। गुरु रामानंद ने उन्हें भगवान राम नाम की दीक्षा दी।किन्तु कबीरदास जी ने उन्हें अपने तरीके से विश्लेषण किया।
बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर , सखी ग्रंथ कबीरदास जी के प्रमुख रचनाएं है।उन्होंने मानवीय मूल्यों व आध्यात्मिक ज्ञान पर जोर दिया है।
“ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए”
ऐसा माना जाता है कि
कबीर दास की मृत्यु 1518 के आसपास मगहर में हुई थी।
कबीर दास जी की रचनाएं आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं और उनकी शिक्षाएं जीवन के मूल्यों को समझने,जीवन को जीने में
मददगार है।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”
नीरू और नीमा (पालन-पोषण करने वाले माता-पिता) पालक रहे है।
इन्होंने एक मानव के मूल्य को समझा,परखा और योग्य बनाया। कबीर दास जी के पत्नी लोई से कमाल और कमाली नाम के दो संतान हुए।एक पुत्री और एक पुत्र।
दामाखेड़ा कबीरपंथियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जो कबीर दास के जीवन और शिक्षाओं से जुड़ा हुआ है। कबीर दास के जीवनकाल में उनके अनुयायियों और शिष्यों ने उनके जीवन और शिक्षाओं को संरक्षित करने के लिए कई स्थलों का निर्माण किया, जिनमें से दामाखेड़ा भी एक है।
दामाखेड़ा में कबीर दास के जीवन और शिक्षाओं से जुड़े कई महत्वपूर्ण स्थल हैं।
दामाखेड़ा में कबीरपंथी आश्रम है, जो कबीर दास के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
कबीर दास के जीवनकाल में दामाखेड़ा का महत्व उनके अनुयायियों और शिष्यों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में था। यहां कबीर दास के अनुयायी उनकी शिक्षाओं को सुनने और उनके साथ समय बिताने के लिए आते थे।
प्रेम, भक्ति, एकता, और सार्वभौमिक भाईचारा के मुख्य उपदेशक संत कबीर दास जी की जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन।
(लेखक भारत देश के संत और गुरु परंपरा को मानने वाले परम अनुयायी है। )