मेरे पिताजी है अलबेला
मेरे पिता जी हैं अलबेला
मेरे पिताजी है अलबेला ,
विपरीत हवा के झोंको को झेला
संघर्षशील,अदम्य साहस से हमको है पढ़ाया लिखाया,
मेरे पिताजी है अलबेला।
हर काम को करते है अकेला,
मस्तमौला मस्तमौला
तैरना, पेड़ चढ़ना,गीत गुनगुनाना,पुस्तक पढ़ना
खेती किसानी करना
है अलबेला है अलबेला।
बोलने में साफ सुथरा
जैसे संत की वाणी
सादा जीवन उच्च विचार
करते है हमको प्यार
पापा जी के आशीष पाकर
हम खुश हो जाते है।
सैर को जाते सुबह की बेला
है अलबेला है अलबेला।
सारे बच्चों से प्यार करते
दिन रात उनके साथ बिताते ,
हाय हेलो करते है आते जाते।
अपने धून में झूमते जाते,
सबको सत्य की बातें बताते।
आज बहुत है उनके चेला
है अलबेला है अलबेला।
साहित्यकार
कविगुरु संतोष कुमार मिरी
“विद्या वाचस्पति”
रायपुर छत्तीसगढ़