भाटा के खोईला
भाटा के खोईला
भाटा के खोईला
कड़कड़ ले सुखाए
तंगी के हालत में
अमचूर डाल के पकाए
खोईला भाटा ह अड़बड़ मिठाय
देखइया मन के लार चुचवाए
मंगनी मांग के अपन साग चलाए।
ये सिर्फ भाटा के बात नई होय
यही हाल सेमी,पाताल,आलू,आमा,
मूली, तीवरा भाजी,चना भाजी अंउ सुनसुनिया भाजी के भी रहय
एक दिन मोर बड़का दाई ल कहेव
कस दाई ये ताजा अउ हरियर तरकारी ले पुरहि
दाई कहीस ये बेटा ये ताजा के बाप आए
तहा दिन के लोगन मन
खावत आत हे
भारी पुस्टेनी होथे
तभै तो डोकरी – डोकरा
मन सौ साल जीथे।
मै कहेव अउ हमन
दाई कहीस की तुमन
जुग-जुग ल जीहव बेटा।
(मोर बड़का दाई ल सादर समर्पित कविता।शत शत नमन)
साहित्यकार
संतोष कुमार मिरी
“विद्या वाचस्पति”
नवा रायपुर छत्तीसगढ़