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22 Jul 2025 · 1 min read

खरपतवार

खरपतवार

बिना मतलब के भी तुम खरपतवार हो गए,
बिना रिश्ते -नाते के रिश्तेदार हो गए।

तेरे हिम्मत को मै दाद देता हूं,
जिसे मै सौ- सौ बार उखाड़ता हूं,
उतने बार उगता है।

मै आश्चर्य होता हूं
यही सिलसिलेवार होता है।
अब खा के कसम मै तो झूठ,फरेबी दुनिया को जमींदोज करता हूं।

तेरे अभिमान का मै तो गिरवी रखता हूं।
मेरे स्वाभिमान से खेलने की कोशिश न कर
मैं तुझे नेस्तनाबूत करता हूं।
मेरे दिल और अरमानों से बेदखल करता हूं।

साहित्यकार
संतोष कुमार मिरी
“विद्या वाचस्पति”
नवा रायपुर छत्तीसगढ़।

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