खूबसूरती का खजाना है प्रकृति
खूबसूरती का खजाना है प्रकृति
सुबह -सुबह आसमान में सूरज चमकते है,
पक्षी उड़ते- उड़ते मधुर गीत गाते हैं।
पेड़ हवा में झूमते हैं, पत्ते लहलहाते हैं,
हम भी पेड़ पर झूला बांध झूलते है ।
पुष्प रंग- बिरंगे देखो,
मनमोहक खुशबू हमको भाते।
दिल को छू जाते,
हर रोज शाला आते जाते।
पूरे दिन प्रकृति सुंदर से सुंदरतम,
नदियाँ की अनवरत निनाद।
ऊंचे -ऊंचे पर्वत सुशोभित
खग कलरव कर रही।
हम भी इस पर खेले कूदे
उसने हमे स्वीकार लिया
जिसने हमें तैयार किया है
उस प्रकृति को हमने सवार लिया।
साहित्यकार
संतोष कुमार मिरी
विद्या वाचस्पति
नवा रायपुर छत्तीसगढ़