बरसात
बरसात
नदी -नाले लबालब हुए,
गिरते बारिश के बूंदों से।
जीव- जंतु के प्यास बुझी,
अनवरत वृष्टि के जल से।
मेंढक की टर्र -टर्र ,
पखियारी की जमात।
बारिश जरूर होगी,
जीव -जंतु के संदेशों की बिसात ।
हम भी भीग गए,
तुम भी भीग गए।
भीग गए जग सारा ,
पोखर की कमल को देखो।
खड़ा है मस्त -न्यारा।
चारों तरफ हरियाली,
धरती लगती है सजी प्याली।
हरे- भरे पेड़ पौधों से,
सुंदर पुष्प निकल आए।
साहित्यकार
कविराज संतोष कुमार मिरी
विद्या वाचस्पति
नवा रायपुर छत्तीसगढ़