कभी आना तुम
उजड़े चमन की वादियाँ,
अब भी पुकारती हैं तुम्हें,
कभी आना तुम।।
हम अब तक खड़े हैं,
इंतज़ार में तुम्हारे,
वही नदिया का किनारा,
चाँदनी रात और टिमटिमाते तारे।
सांत्वना देती उखड़ती साँसें,
अश्कों से भीगी उनींदी आँखें,
अब भी निहारती हैं तुम्हें,
कभी आना तुम।।
उर में बसी है अब तक,
सुर्ख़ लबों की वही नशीली मुस्कान,
मौन मग़र बोलती आँखें
बयाँ करती दिल की हर दास्तान।
मुरझाते उपवन में मायूस हर कली,
उदास मधुवन की सिसकती गली,
अब भी बुलाती है तुम्हें,
कभी आना तुम।।
कसमसाती यादों का ज़खीरा,
अब भी बसा है ज़ेहन में हमारे,
कैसे कहूँ हवाएँ भी क़ातिल हैं,
ले आती ख़ुशबू बगीचे से तुम्हारे।
घड़ियाँ जो मधुरिम बितायी थी हमने,
फूलों की बगिया जो खिलायी थी तुमने,
अब भी चाहती हैं तुम्हें?
कभी आना तुम।।
उजड़े चमन की वादियाँ,
अब भी पुकारती हैं तुम्हें,
कभी आना तुम।।
#स्वरचित एवं मौलिक रचना
#डा. राम नरेश त्रिपाठी ‘मयूर’