जीवन की कोमल कड़ी
जीवन की कोमल कड़ी
जन्म लिया जब धरा पर आया,
माँ की गोदी ने स्वर्ग दिखाया।
स्नेह-दुलार की ममता पाई,
हर आँचल में खुशबू समाई।
पाँच बरस की उम्र में जाकर,
ज्ञान के मंदिर में रखा कदम।
अक्षर-अक्षर बोया जीवन,
बनी समझ की पहली छँव।
पढ़ते-पढ़ते बौद्धिक ज्योति,
चेतना का दीप जलाया।
दिशा मिली जब लक्ष्य मिला,
आशाओं ने पथ सजाया।
किशोर वय में देखा जग को,
रिश्तों की गहराई जानी।
दुःख-सुख के रंग मिले जब,
मन की मूरत भी पहचानी।
भावों की लहरें उमड़ पड़ीं जब,
तरुणाई ने दस्तक दी।
हर धड़कन में स्वप्न समेटे,
नई उड़ानों की बुनियाद पड़ी।
यौवन में जिम्मेदारियाँ आईं,
जीवन की गाड़ी चलती गई।
सपनों को साकार किया,
परिवार की बगिया महकी नई।
प्रौढ़ावस्था में ठहराव आया,
अनुभवों का खजाना पाया।
सीखा कि जीवन सिर्फ दौड़ नहीं,
हर पल में छिपा है सच्चा माया।
मुकेश शर्मा विदिशा