Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
15 Jul 2025 · 1 min read

भूख

कविता

भूख हूँ साहब
एक निवाले के लिए ,
चीख उठती हूँ ।
विलख उठती हूँ ।
क्योंकि मैं भूख हूँ ।
सोने नहीं देती ।
रोने नहीं देती ।
इस जीवन में,
सही काम नहीं ।
उचित दाम नहीं ।
मगर भूख हूँ ।
हाथ फैला देती हूँ ।
भिक मंगवा देती हूँ ।
एक निवाले के लिए
पिटवा देती हूँ
कैद करा देती हूँ ।
बदनामी ,
तिरस्कार,
गुनहगार,और
चोर,न जाने क्या क्या ?
लांक्षन
लग देती हूँ ।
बस एक निवाले के लिए
और मूक बन जाता,
भूखा व्यक्ति ।
फिर,
तरसती निगाहे ,
मदद पाने को ,
सुख जाते आँसू
उसकी आँख के,और
एक निवाले की चाहत में ,
ये सब देख कर
मानवता चीखती है ।
उसी मानव को
जहाँ संवेदना
करूणा त्याग ,प्रेम
जनप्रिय ,और
दिल से सम्राट
उसी के पुरुषर्था से
बची आज मानवता
और झाँकता अतीत
इसी कश्मकश में
आखिर भूख हूँ ।
शहर के किनारे
नदी नुक्कड़ चौहरहे
अनगनित मिल जाएंगे
मुझसे तड़फते ।
उन घरों के सामने
जहाँ खाना व्यर्थ
में फेंका जाता है ।
यकीन नहीं आता
उन रिसॉर्ट,होटल,
रेस्तरां वहाँ देखो
मैं मिल जाऊँगी तुम्हें !
क्योंकि मैं भूख हूँ साहब
गरीब, लाचार
किसी मजबूर के पेट की
मैं जानती हूँ
तुम चतुर हो चालक हो
निडर निर्भीक
मुझ से बचकर निकल जाओगे ।
और तुम मारोगे अपनी डिगें
बनोगे समाज सेवी ।
लेकिन दिखावे के,
सिवा कुछ नहीं ।
और समझ पाते ।
दर्द ,पीड़ा ,
भूखे की कीमत ।

डॉ अमित कुमार बिजनौरी
कदराबाद खुर्द स्योहारा
जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश
मोबाईल न०8433245823

Loading...