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15 Jul 2025 · 1 min read

दौर तो फिर भी मेहरबां निकला

दौर तो फिर भी मेहरबां निकला
अपना जज़्बा ही नातवां निकला

लहर ने फ़ेर ली नज़र अपनी
कश्तियाँ छोड़ बादबां निकला

निकहतें तेरी ओढ़ ली मैनें
और गलियों से बरहना निकला

एक नुक्ते में जो समाया था
फैलकर एक कहकशां निकला

भीड़ निकली थी तू नहीं निकला
तेरी गलियों से कारवां निकला

जिसको हम दुश्मन ए चमन समझे
वो ही तो उसका बागबां निकला

रायगानी में भी वो टूटा नहीं
जब मिला वो रवां दवां निकला

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