दौर तो फिर भी मेहरबां निकला
दौर तो फिर भी मेहरबां निकला
अपना जज़्बा ही नातवां निकला
लहर ने फ़ेर ली नज़र अपनी
कश्तियाँ छोड़ बादबां निकला
निकहतें तेरी ओढ़ ली मैनें
और गलियों से बरहना निकला
एक नुक्ते में जो समाया था
फैलकर एक कहकशां निकला
भीड़ निकली थी तू नहीं निकला
तेरी गलियों से कारवां निकला
जिसको हम दुश्मन ए चमन समझे
वो ही तो उसका बागबां निकला
रायगानी में भी वो टूटा नहीं
जब मिला वो रवां दवां निकला