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12 Jul 2025 · 1 min read

स्वर उपहार

///स्वर उपहार///

कंपित कंठ के प्रच्छन्न स्वरों का,
मां यह तुमको उपहार।
सुप्त हृदय तल की भाव सृष्टि में,
कर दो मृदु आशा संचार।।

इन प्रछन्न स्वरों की श्लथ माला ले,
जो तुहीन तंतुओं पर मतिभार।
अब अविछिन्न विस्तीर्ण फलक पर,
रच सकूं प्रभा पुंज भरा संसार।।

लग्न घड़ी थी नित्य वियोग की,
तोड़ कारा चलूं अविराम।
निकल पड़ूं अब लक्ष्य वेध हित,
लेकर मां तेरा शुचि नाम।।

सहस्त्र किरणें जो पंखुड़ियों पर,
नाच रही करती कलगान।
इस धारा में पुष्पों की लड़ी बन,
उनसे उठें ये स्वर विहान।।

स्वर साधना के अनुनाद कंप पर,
आरोपित होवे अनहद गान।
उन्हीं स्वरों का यजन और अन्वेषण,
मुझे करा दो स्वर मधुता पान।।

स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)

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