"दोनों तरफ है आग बराबर लगी हुई" जैसा शेर कभी मुहब्बत के लिए
“दोनों तरफ है आग बराबर लगी हुई” जैसा शेर कभी मुहब्बत के लिए कहा गया था, जो अब नफ़रत के लिए लागू हो रहा है। यह है बदलाव?
😞प्रणय प्रभात😞
“दोनों तरफ है आग बराबर लगी हुई” जैसा शेर कभी मुहब्बत के लिए कहा गया था, जो अब नफ़रत के लिए लागू हो रहा है। यह है बदलाव?
😞प्रणय प्रभात😞