रोला छंद
रोला छंद
चूल्हा-चक्की छोड़ , नार अब चली कमाने ।
देखो रोटी आज , प्राण प्रिय लगे बनाने ।।
नारी के सब काम, आज तो पति संभाले ।
नारी तन शृंगार, पिया को मिलते छाले ।।
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शादी का परिणाम , हाथ में लटका थैला ।
नौकर लगता आज , नार को बाँका छैला ।।
टूट गया हर स्वप्न, जवानी हुई पुरानी ।
छोड़ गई मुस्कान, आँख में खारा पानी ।।
सुशील सरना /